❝विद्यारूपी धन सब प्रकार के धन से श्रेष्ठ हैं |❞
Category : Motivational
By : User image Anonymous
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04 Feb 18
A Life Story - एक प्रसंग जिंदगी का

एक प्रसंग जिंदगी का

एक राजा बहुत दिनों से पुत्र की प्राप्ती के लिये आशा लगाये बैठा था,
पर पुत्र नही हुआ।
उसके सलाहकारों ने तांत्रिकों से सहयोग की बात बताई।
सुझाव मिला कि किसी बच्चे की बलि दे दी जाये तो पुत्र प्राप्ती हो जायेगी।
राजा ने राज्य में ये बात फैलाई कि जो अपना बच्चा देगा
उसे बहुत सारे धन दिये जायेगे।
एक परिवार में कई बच्चें थे, गरीबी भी थी,
एक ऐसा बच्चा भी था जो ईश्वर पर आस्था रखता था
तथा सन्तों के संग सत्संग में ज्यादा समय देता था।
परिवार को लगा कि इसे राजा को दे दिया जाये
क्योंकि ये कुछ काम भी नही करता है,
हमारे किसी काम का भी नही।
इससे राजा प्रसन्न होकर बहुत सारा धन देगा।  
ऐसा ही किया गया बच्चा राजा को दे दिया गया।
राजा के तात्रिकों द्वारा बच्चे की बलि की तैयारी हो गई,
राजा को भी बुलाया गया, बच्चे से पूछा गया कि तुम्हारी आखरी इच्छा क्या है?
क्योंकि आज तुम्हारा जीवन का अन्तिम दिन है।
बच्चे ने कहा कि ठीक है मेरे लिये रेत मगा दिया जाये, रेत आ गया।
बच्चे ने रेत से चार ढ़ेर बनाये, एक-एक करके तीन रेत के ढ़ेर को तोड़ दिया
और चौथे के सामने हाथ जोड़कर बैठ गया और कहा कि अब जो करना है करे।
ये सब देखकर तॉत्रिक डर गये बोले कि ये तुमने क्या किया है पहले बताओं।
राजा ने भी पूछा तो बच्चे ने कहा कि पहली ढ़ेरी मेरे माता पिता की है,
मेरी रक्षा करना उनका कर्तब्य था पर उन्होने पैसे के लिये मुझे बेच दिया।
इसलिये मैने ये ढ़ेरी तोड़ी, दूसरा मेरे सगे-सम्बन्धियों का था,
उन्होंने भी मेरे माता-पिता को नही समझाया तीसरा आपका है राजा
क्योंकि राज्य के सभी इंसानों की रक्षा करना राजा का ही काम होता है
पर राजा ही मेरी बलि देना चाह रहा है तो ये ढ़ेरी भी मैने तोड़ दी।
अब सिर्फ मेरे सत्गुरु और ईश्वर पर मुझे भरोसा है इसलिये ये एक ढ़ेरी मैने छोड़ दी है।
राजा ने सोचा कि पता नही बच्चे की बलि से बाद भी पुत्र प्राप्त हो या न हो
क्यों ना इस बच्चे को ही अपना पुत्र बना ले,
इतना समझदार और ईश्वर भक्त बच्चा है।
इससे अच्छा बच्चा कहा मिलेगा।
राजा ने उस बच्चे को अपना बेटा बना लिया
और राजकुमार घोषित कर दिया।  

भावार्थ:

कि जो ईश्वर और सत्गुरु पर यकीन रखते है,
उनका बाल भी बाका नही होता है,
हर मुश्किल में एक का ही जो आसरा लेते है
उनका कही से किसी प्रकार का कोई अहित नही होता है।


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