
" कन्यादान "
 जाओ , मैं नहीं मानता इसे ,
 क्योंकि मेरी बेटी कोई चीज़ नहीं ,
 जिसको दान में दे दूँ ;
 मैं बांधता हूँ बेटी तुम्हें एक पवित्र बंधन में ,
 पति के साथ मिलकर निभाना तुम ,
 मैं तुम्हें अलविदा नहीं कह रहा ,
 आज से तुम्हारे दो घर ,
 जब जी चाहे आना तुम ,
 जहाँ जा रही हो ,
 खूब प्यार बरसाना तुम ,
 सब को अपना बनाना तुम ,
 पर कभी भी ,
 न मर मर के जीना ,
 न जी जी के मरना तुम ,
 तुम अन्नपूर्णा , शक्ति , रति सब तुम ,
 ज़िंदगी को भरपूर जीना तुम ,
 न तुम बेचारी , न अबला ,
 खुद को असहाय कभी न समझना तुम ,
 मैं दान नहीं कर रहा तुम्हें ,
 मोहब्बत के एक और बंधन में बाँध रहा हूँ ,
 उसे बखूबी निभाना तुम .................
 एक सोच एक पहल