पुराने ज़माने की बात है।
किसी गाँव में एक सेठ रहेता था। उसका नाम था नाथालाल सेठ। वो जब भी गाँव के बाज़ार से निकलता था तब लोग उसे नमस्ते या सलाम करते थे , वो उसके जवाब में मुस्कुरा कर अपना सिर हिला देता था और बहुत धीरे से बोलता था की " घर जाकर बोल दूंगा "
एक बार किसी परिचित व्यक्ति ने सेठ को ये बोलते हुये सुन लिया। तो उसने कुतूहल वश सेठ को पूछ लिया कि सेठजी आप ऐसा क्यों बोलते हो के " घर जाकर बोल दूंगा "
तब सेठ ने उस व्यक्ति को कहा, में पहले धनवान नहीं था उस समय लोग मुझे 'नाथू ' कहकर बुलाते थे और आज के समय में धनवान हूँ तो लोग मुझे 'नाथालाल सेठ' कहकर बुलाते है। ये इज्जत मुझे नहीं धन को दे रहे है ,
इस लिए में रोज़ घर जाकर तिज़ोरी खोल कर लक्ष्मीजी (धन) को ये बता देता हूँ कि आज तुमको कितने लोगो ने नमस्ते या सलाम किया। इससे मेरे मन में अभिमान या गलतफहमी नहीं आती कि लोग मुझे मान या इज्जत दे रहे हैं। ... इज्जत सिर्फ पैसे की है इंसान की नहीं ..
This one is another truth of life
100% truth